दुःख में स्वयं की एक अंगुली
आंसू पोंछती है ;
और सुख में दसो अंगुलियाँ
ताली बजाती है ;
जब स्वयं का शरीर ही ऐसा
करता है तो
दुनिया से क्या गिला-शिकवा
क्या करना…!!
दुःख में स्वयं की एक अंगुली
आंसू पोंछती है ;
और सुख में दसो अंगुलियाँ
ताली बजाती है ;
जब स्वयं का शरीर ही ऐसा
करता है तो
दुनिया से क्या गिला-शिकवा
क्या करना…!!