“विचार” एक “जल” की तरह
है,
आप उसमें “गंदगी” मिला दो तो
वह “नाला” बन जाऐगा,
अगर उसमें “सुगंध” मिला दो तो
वह “गंगाजल” बन जाऐगा !
“विचार” एक “जल” की तरह
है,
आप उसमें “गंदगी” मिला दो तो
वह “नाला” बन जाऐगा,
अगर उसमें “सुगंध” मिला दो तो
वह “गंगाजल” बन जाऐगा !