मैंने बहुत से “इन्सान”(Person) देखे हैं, जिनके बदन पर “लिबास”(Dress) नहीं होता।
और बहुत से “लिबास” देखे हैं, जिनके अन्दर “इन्सान”
View More मैंने बहुत से “इन्सान”(Person) देखे हैंमैंने बहुत से “इन्सान”(Person) देखे हैं, जिनके बदन पर “लिबास”(Dress) नहीं होता।
और बहुत से “लिबास” देखे हैं, जिनके अन्दर “इन्सान”
View More मैंने बहुत से “इन्सान”(Person) देखे हैंIs mobile ki duniya(Mobile World) me hum apno ko bhul jate h,
Bate nhi sunte kisi ki, ignor krte h,
Dusro k dukh ko apni khusi aur apne dukh ko apna status bana lete h.
कभी-कभी “गुस्सा”,,,,
मुस्कुराहट से भी ज्यादा ‘स्पेशल’ होता है,
क्योंकि
“स्माइल” तो सबके लिए होती है,,,
मगर “गुस्सा” सिर्फ उसके लिए होता है,,,,
जिसे हम कभी “खोना” नहीं चाहते.
इन्सान भी अजीब है,
दुआ के वक्त समझता है
कि खुदा बहुत करीब है
ओर~
गुनाह के वक्त समझता है
कि खुदा बहुत दूर है