मैंने बहुत से “इन्सान”(Person) देखे हैं, जिनके बदन पर “लिबास”(Dress) नहीं होता।
और बहुत से “लिबास” देखे हैं, जिनके अन्दर “इन्सान” नहीं होता।
कोई “हालात” को नहीं समझता, तो कोई “जज़्बात” को नहीं समझता।
ये तो बस अपनी-अपनी “समझ” है……
कोई “कोरा कागज़” भी पढ़ लेता है, तो कोई पूरी “किताब” नहीं समझता।