कर्मों की आवाज़
शब्दों से भी ऊँची होती है
यह आवश्यक नहीं कि
हर लड़ाई जीती ही जाए
आवश्यक तो यह है कि
हर हार से कुछ सीखा जाए
तब तक कमाओ… जब तक
“महंगी” चीज “सस्ती” ना लगने लगे..
चाहे वो सामान हो या सम्मान….?
कर्मों की आवाज़
शब्दों से भी ऊँची होती है
यह आवश्यक नहीं कि
हर लड़ाई जीती ही जाए
आवश्यक तो यह है कि
हर हार से कुछ सीखा जाए
तब तक कमाओ… जब तक
“महंगी” चीज “सस्ती” ना लगने लगे..
चाहे वो सामान हो या सम्मान….?